उर्दू के अज़ीम शाइर और हिन्दी सिनेमा के लोकप्रिय और विख्यात गीतकार साहिर लुधियानवी की आज पुण्यतिथि है ।इश्क़ और इन्क़लाब के दो परस्पर विरोधी विचारों को केंद्र में रख कर व दोनों को अपनी अद्भुत लेखनी से उत्कृष्ट अभिव्यक्ति दे कर साहिर ने उर्दू साहित्य और हिन्दी सिनेमा जगत में अपनी विशिष्ट पहचान बनाई ।
फिल्म ‘धूल का फूल’ के लिए ‘तू हिन्दू बनेगा न मुसलमान बनेगा, इंसान की औलाद है , इंसान बनेगा ....’ जैसा कालजयी गीत लिख कर अपनी उदात्त धर्म निरपेक्ष विचारधारा का परिचय दिया ।
उनके गीत व ग़ज़लें यथा:
ये महलों ये तख़तों ये ताजों की दुनिया
ये ईंसान के दुश्मन समाजों की दुनिया
ये दौलत के भूखे रिवाजों की दुनिया
ये दुनिया अगर मिल भी जाए तो क्या है .....
व
जिन्हें नाज़ है हिन्द पर वो कहाँ हैं .....
में मौजूदा व्यवस्था से उनका मोहभंग व इसमे परिवर्तन की आवश्यकता परिलक्षित होती है।
पर ऐसा भी नहीं है कि उनने उम्मीद का दामन छोड़ दिया है, भविष्य के प्रति आशावान हो, वे लिखते हैं-
'वो सुबह कभी तो आएगी........'
फिल्म ‘धूल का फूल’ के लिए ‘तू हिन्दू बनेगा न मुसलमान बनेगा, इंसान की औलाद है , इंसान बनेगा ....’ जैसा कालजयी गीत लिख कर अपनी उदात्त धर्म निरपेक्ष विचारधारा का परिचय दिया ।
उनके गीत व ग़ज़लें यथा:
ये महलों ये तख़तों ये ताजों की दुनिया
ये ईंसान के दुश्मन समाजों की दुनिया
ये दौलत के भूखे रिवाजों की दुनिया
ये दुनिया अगर मिल भी जाए तो क्या है .....
व
जिन्हें नाज़ है हिन्द पर वो कहाँ हैं .....
में मौजूदा व्यवस्था से उनका मोहभंग व इसमे परिवर्तन की आवश्यकता परिलक्षित होती है।
पर ऐसा भी नहीं है कि उनने उम्मीद का दामन छोड़ दिया है, भविष्य के प्रति आशावान हो, वे लिखते हैं-
'वो सुबह कभी तो आएगी........'
अपनी गज़ल/गीत ‘ रंग और नूर की बारात किसे पेश करूँ, ये मुरादों की हसीं रात किसे पेश करूँ’ में जहां वे एक प्रेमी के उद्गार प्रस्तुत करते हैं , वहीं एक और गीत की पंक्ति ‘ भूख और प्यास की मारी हुई इस दुनिया में, इश्क़ ही एक हक़ीक़त नहीं कुछ और भी है...’ में ठोस धरातल पर जीवन की सच्चाईयों को बयां करते हुए मिलते हैं। दोनों विपरीत स्थितियाँ उन्हें उद्वेलित करती हैं। ‘ कभी कभी मेरे दिल में खयाल आता है’ में प्रेम की पराकाष्ठा नज़र आती है, तो ‘मैं पल दो पल का शायर हूँ ...’ में जीवन की क्षणभंगुरता का परिचय मिलता है।गरज ये कि साहिर ने अपनी शायरी में जीवन के हर पहलू को बखूबी छूआ है। ‘औरत ने जनम दिया मरदों को, मरदों ने उसे बाज़ार दिया’ गीत में एक कड़वी सच्चाई से रूबरू करवाते हैं।
स्त्री के प्रति सहानुभूति उनके अपनी माँ के प्रति श्रद्धा से उपजी प्रतीत होती है, जिसकी पृष्ठभूमि में कहीं उनके पिता की सामंतवादी और जमींदाराना सोच के प्रति उनका विरोध है।
मशहूर लेखिका व कवयित्रि अमृता प्रीतम ने साहिर के प्रति अपने प्रेम का इज़हार बेबाकी से किया है , तो गायिका सुधा मल्होत्रा ने अपने मुकेश के साथ गाए साहिर द्वारा रचे गीत ‘ तुम मुझे भूल भी जाओ तो ये हक हैं तुमको ...’ को संगीतबद्ध करके भावनाओं को खूब उकेरा है।
साहिर के बारे में जितना लिखा जाए वो कम है ।
स्त्री के प्रति सहानुभूति उनके अपनी माँ के प्रति श्रद्धा से उपजी प्रतीत होती है, जिसकी पृष्ठभूमि में कहीं उनके पिता की सामंतवादी और जमींदाराना सोच के प्रति उनका विरोध है।
मशहूर लेखिका व कवयित्रि अमृता प्रीतम ने साहिर के प्रति अपने प्रेम का इज़हार बेबाकी से किया है , तो गायिका सुधा मल्होत्रा ने अपने मुकेश के साथ गाए साहिर द्वारा रचे गीत ‘ तुम मुझे भूल भी जाओ तो ये हक हैं तुमको ...’ को संगीतबद्ध करके भावनाओं को खूब उकेरा है।
साहिर के बारे में जितना लिखा जाए वो कम है ।
इस अज़ीम शायर को हमारी विनम्र श्रद्धांजलि !
No comments:
Post a Comment