"कहाँ तो तय था चराग़ाँ हर एक घर के लिये
कहाँ चराग़ मयस्सर नहीं शहर के लिये
कहाँ चराग़ मयस्सर नहीं शहर के लिये
यहाँ दरख़्तों के साये में धूप लगती है
चलो यहाँ से चले और उम्र भर के लिये
चलो यहाँ से चले और उम्र भर के लिये
न हो क़मीज़ तो घुटनों से पेट ढक लेंगे
ये लोग कितने मुनासिब हैं इस सफ़र के लिये............."
- दुष्यंत कुमार
ये लोग कितने मुनासिब हैं इस सफ़र के लिये............."
- दुष्यंत कुमार
हिन्दी ग़ज़ल को प्रसिद्धि और लोकप्रियता की ऊंचाइयों पर ले जाने वाले ग़ज़लकार दुष्यंत कुमार की आज जयंती है !
विनम्र श्रद्धांजलि !
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