हिन्दी साहित्य जगत के प्रमुख हस्ताक्षर रहे विख्यात कवि , उपन्यासकार, नाटककार एवं अनुवादक सियारामशरण गुप्त की आज जयंती है । उनके द्वारा रचित कविता ' एक फूल की चाह ' जिसमे एक दलित परिवार की रुग्णावस्था में पड़ी बच्ची व पिता की असहायता का मार्मिक प्रसंग वर्णित है । ....' मुझको देवी के प्रसाद का एक फूल ही दो ला कर ' पंक्ति में बच्ची की एक मात्र इच्छा, जो पूरी नहीं हो पाती का प्रकटीकरण है । पिता मंदिर में प्रवेश करने का साहस करता है और फूल भी ले लेता है पर कुछ लोगों द्वारा पकड़ लिया जाता है और निष्ठुर रूढ़िवादी तन्त्र उसे एक सप्ताह के कारावास का दण्ड देता है । एक सप्ताह बाद जब वो कारावास से बाहर आता है तो पाता है कि उसकी बेटी का देहांत हो चुका है और उसका अन्तिम संस्कार भी कर दिया गया है । अपने प्रकार की यह एक अनूठी रचना है !
बहुमुखी प्रतिभा के धनी साहित्यकार को हमारी विनम्र श्रद्धांजलि !
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