Thursday, August 3, 2017

मैथिलीशरण गुप्त

महात्मा गांधी द्वारा राष्ट्रकवि के रूप में सम्मानित मैथिलीशरण गुप्त की आज जयंती है।औपचारिक शिक्षा बहुत कम हुई और घर पर रह कर ही बहुत कुछ पढ़ा, सीखा व गुना ! बहुत कम उम्र से ही लेखन में रुचि रही ।
आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी की प्रेरणा से खड़ीबोली में काव्य रचना प्रारम्भ की तथा प्रमुख आधुनिक कवि के साथ साथ खड़ी बोली के प्रथम कवि होने का उन्हें गौरव प्राप्त है । उनकी प्रमुख रचनाओं में महाकाव्य ‘साकेत’ का विशेष स्थान है जिसमे उन्होंने राम बनवास के बाद लक्ष्मण की पत्नी उर्मिला की मनोदशा का वर्णन किया है । उन्होंने रामायण की खल नायिका मानी जाने वाली रानी कैकई के पश्चाताप का हवाला दे कर इस पात्र के प्रति भी संवेदना और सहानुभूति जगाई है। ‘यशोधरा’ उनकी एक और महत्वपूर्ण रचना है । महाभारत के प्रसंग में अभिमन्यु की मृत्यु का वर्णन अद्वितीय है । राष्ट्र भावना से ओतप्रोत ‘भारत भारती’ में भारत के भूतकाल व वर्तमान का चित्रण एवं भावी स्वरूप की कल्पना उल्लिखित है ।महाकाव्य, खंड काव्य , अनुवाद एवं नाटक – सभी विधाओं में उन्होंने श्रेष्ठ सृजन किया है । उनकी रचनाओं में प्रेम, विरह, वियोग, देशभक्ति, राष्ट्र चेतना , ईश्वर भक्ति - इन सब का समावेश मिलता है । यह उनके काव्य की विशेषता ही है कि 45 से 50 वर्ष पूर्व के अपने स्कूल के विद्यार्थी काल में पढ़ी कविताओं की कुछ पंक्तियाँ मुझे आज भी याद हैं .
यथा:
"माँ कह एक कहानी।"
बेटा समझ लिया क्या तूने मुझको अपनी नानी?"
"कहती है मुझसे यह चेटी, तू मेरी नानी की बेटी
कह माँ कह लेटी ही लेटी, राजा था या रानी?
माँ कह एक कहानी।"
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संग्राम में निज-शत्रुओं की देखकर यह नीचता
कहने लगा वह यों वचन दृग युग-करों से मींचता -
"नि:शस्त्र पर तुम वीर बनकर वार करते हो अहो!
है पाप तुमको देखना भी पामरों! सम्मुख न हो!!
तात! हे मातुल! जहाँ हो प्रणाम तुम्हें वहीं,
अभिमन्यु का इस भाँति मरना भूल न जाना कहीं!"
दृग बंद कर वह यशोधन सर्वदा को सो गया,
हा! एक अनुपम रत्न मानो मेदिनी का खो गया ||
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नर हो, न निराश करो मन को
कुछ काम करो, कुछ काम करो
जग में रह कर कुछ नाम करो
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दो कार्यावधि के लिए वह राज्यसभा के मनोनीत सदस्य भी रहे ।
1954 में उन्हें पद्मभूषण से सम्मानित किया गया !
बहुमुखी प्रतिभा के धनी इस महान साहित्यकार को हमारी विनम्र श्रद्धांजलि !

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